'मुझे वह समय याद आता है जब देश में अतिथि नियंत्रण आदेश लागू था। कुछ प्रांतों में तो विवाह हो या अन्य कोई समारोह, पच्चीस से अधिक मेहमान बुलाने की अनुमति नहीं थी। पश्चिम बंगाल में वैवाहिक निमंत्रण में लिखा होता था- अपना राशन खुद लेकर आइए।
इसका अर्थ था कि अगर अतिथि संख्या सीमा से अधिक हो गई और कहीं छापा पड़ जाए तो बताया जा सके- सब अपना-अपना राशन खुद लेकर आए हैं, मेजबान ने कानून नहीं तोड़ा है।
ये वे दिन थे जब देश में अन्न की कमी थी। पैंसठ-छयासठ में दो साल लगातार अकाल झेलना पड़ा था; बहुत सम्पन्न लोगों को छोडक़र बाकी को गेहूं, चावल, तेल, शक्कर के लिए राशन दुकान के आगे लाइन लगानी पड़ती थी; शादी हो या बरसी, सामाजिक परंपराओं के निर्वाह के लिए लोग कालाबाजार से प्रबंध करते थे। वे दिन हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं, लेकिन यह भी सोचने की बात है कि आज जो देख रहे हैं वह कितना शोभाजनक है।'
(अक्षर पर्व अप्रैल 2017 अंक की प्रस्तावना)
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